Thursday, February 23, 2012

"थक गए चरागों की शहादत को सुबह कहते हो,
हर शख्स तनहा है सफ़र में आग बुझ जाने के बाद." -----राजीव चतुर्वेदी
 
 


"मैं तो एक चराग सा जलता रहा, मुस्कुराता रहा,
रोशनी तुमको हो न पसंद तो बुझा दो मुझको.
हवाएं कल भी चलती थीं हवाएं अब भी चलती हैं,
मैं थक गया हूँ जलते जलते बुझा सको तो बुझा दो मुझको."
-----राजीव चतुर्वेदी
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"सुबह जब होती है तो चराग बुझ ही जाते है,
दूसरों के तेल से जो जलते हैं सूरज नहीं होते. " -----राजीव चतुर्वेदी
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"कुछ मुक़द्दस से चरागों के मुकद्दर में धुंआ लिक्खा था,
रोशनी की तौफ़ीक के बदले तारीकीयाँ तोहफे में थीं." -----राजीव चतुर्वेदी

मुक़द्दस= पवित्र . तौफ़ीक= पुरुष्कार / वरदान . तारीकीयाँ = अँधेरे
"आँख में सपने लिए संयोग के,
देर तक जलता रहा उस खिड़की का दिया."
                          ---- राजीव चतुर्वेदी
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"एक चराग थक के सो गया यारो,
हवाएं भी इस हादसे से ग़मगीन सी हैं."
                               ----राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

anjana said...

bahut sunder lajabab

Kishore Nigam said...

Marvelous, very heart touching, quotable lines.Tiredness demands at least one of the three things..A little rest for recovery of energy , a helping hand or glimpse of some success otherwise it drowns in dejection. In case you are confident in genuineness of your aim and ways, the later two things may be ignorable.