Wednesday, March 28, 2012

तेरे मेरे बीच का दरिया खामोशी से बहता था


" तेरे मेरे बीच का दरिया
खामोशी से बहता था
आज तो पुल भी टूट गया है
जज्बातों के सैलाब में.

... वख्त का सूरज सहम गया है
अंधों के अधिकारों से
आज तो दिल भी ड़ूब गया है
आंसू के तालाब में." --- राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरा, समय का प्रवाह कोई सूखी जमीन का रास्ता निकाल देगा।

suman.renu said...

सोच में ख़ामोशी और कुछ तो है जो इन शब्दों में बह चला.....बहुत सुंदर कविता