" मेरी बंजर भावनाओं के गलियारों में
जो गमले दो चार पड़े हैं --तुमने रख्खे हैं
इन गमलों में पानी तुम ही डाला करते बेहतर होता
गमलों के ये बौने पोधे पानी पीकर
पढ़ते होंगे उस बसंत की परिभाषा भी
जिसको तितली तुमसे बेहतर जान रही हैगमलों में तुम फूल उगा कर भूल गए हो
गमलों और बंगलों में जो रहते हैं जड़ होते है
चेतन की चर्चा मत करना वेतन की मारामारी है
और घूसखोरी के अवसर बंगलेवालों को
गमले पर बरसे मानसून जैसे लगते हैं
इनकी जड़ें जमीनों से रिश्ता भी कम रखती हैं
जड़ें नहीं जिनकी गहरी वह बहकेंगे
मिट्टी से रिश्ता रखेंगे वह महकेंगे
गमले के पौधे बंगले के बच्चे जल्दी खिलते, मरते भी जल्दी हैं
मेरी बंजर भावनाओं के गलियारों में
जो गमले दो चार पड़े हैं --तुमने रख्खे हैं
इन गमलों में पानी तुम ही डाला करते बेहतर होता
गमलों के ये बौने पौधे पानी पीकर
पढ़ते होंगे इस बसंत की परिभाषा भी
जिसको तितली तुमसे बेहतर जान रही है ."
------ राजीव चतुर्वेदी
7 comments:
भाव रोपित करना और उन्हें जीवित रख पाना कहाँ हो पाता है।
कल 31/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जड़ें नहीं जिनकी गहरी वह बहकेंगे
मिट्टी से रिश्ता रखेंगे वह महकेंगे....
अद्भुत रचना....
सादर.
बहुत खूबसूरत..........
सादर
अनु
बहुत सुन्दर भावमयी अभिव्यक्ति...
जड़ें नहीं जिनकी गहरी वह बहकेंगे
मिट्टी से रिश्ता रखेंगे वह महकेंगे
...सुन्दर भाव रोपित किये है आपने
बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
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