Sunday, April 29, 2012

अपने मुस्तकबिल के बावत सोचने दो अब मुझे

"अपने मुस्तकबिल के बावत सोचने दो अब मुझे ,
गुजरती शाम का सूरज मुडेरों पर खडा है.

वहां जिस डाल पर एक चिड़िया का घोंसला है ,
वहां तक एक अजगर जा चढ़ा है .

इबादत और अब मैं क्यों करूं तेरी,
तू उतनी दूर ही मुझसे अब भी खडा है .

ये कहते हैं कि पूरी रात रोया है रहमगर भी,
यजीदी काफिले का रुख अब फिर से मुड़ा है."
-- राजीव चतुर्वेदी

( मुस्तकबिल = भविष्य , इबादत = अर्चना/ पूजा , रहमगर = दयानिधान / भगवान् / अल्लाह ,
यजीदी काफिला = कर्बला में यजीद के काफिले ने ही मुहम्मद साहब के वंश नाश का प्रयास किया था./ कातिल खलनायक की सेना.)

No comments: