Tuesday, April 17, 2012

आओ कुछ अच्छा लिखें


"आओ कुछ अच्छा लिखें
राष्ट्रपति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
कभी इंद्रा गांधी की रसोइया का राष्ट्रपति बन जाना उनके लिए गर्व की बात है
कभी किसी अम्बानी की मेहरबानी से कोई राष्ट्रपति बन जाता है
राष्ट्र के लिए किसी उल्लेखनीय कुर्बानी से तो कोई राष्ट्रपति बना ही नहीं
नरसिम्हाराव,देवगोडा, गुजराल , मनमोहन जैसे  प्रधानमंत्रीयों पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
  प्रधानमंत्री के पालने में नरेंद्र मोदी अभी नवजात पूत हैं
यह तो वक्त बताएगा कि वह सपूत हैं या मनमोहन जैसे ही कपूत हैं
सोनिया पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क्योंकि वह देश राजनीति से नहीं देह राजनीति के रास्ते यहाँ तक पहुँची हैं
जिस योग्यता से कोंग्रेस में अम्बिका सोनी थी
उसी योग्यता की दम पर भाजपा में स्मृति ईरानी हैं
इनकी योग्यत अभी शोध का विषय है शेष तो वही कहानी है
राहुल गांधी हों या महाजन पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
अर्थ नीति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क्योंकि नरेंद्र मोदी के अच्छे दिन आ चुके है हमारे अभी तक तो नहीं आये हैं
आम आदमी की अर्थ व्यवस्था में मनमोहन और मोदी काल में अभी तक तो कोई अंतर नहीं दिखा
हमारी अर्थ व्यवस्था की अर्थी ही निकल गयी है
राजनीति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क्योंकि राजनीति हो ही नहीं रही है बस दुकाने चल रही हैं और गिरोह पल रहे हैं
खेल नीति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क्योंकि वंशवाद के चलते उधर राहुल इधर वरुण हमारे बच्चे करुण
खेल हो, रेल हो या तेल हो मनमोहन तो गया पर अब लोग कह रहे हैं---" मोदी तुम अब तक तो फेल हो" 
क़ानून व्यवस्था पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क्योंकि घूस तो पेशकार लेता है, पहुँचती कहाँ तक है क्या बताएं
पुलिस पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
मायाबती/ मुलायम/ करूणानिधि/ यदुरप्पा /कल्माणी / कनीमोझी पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
"शीला" कहो तो "शीला की जवानी" याद आती है
नहीं याद आता कि शीला नाम की शख्सियत पंद्रह साल दिल्ली की मुख्यमंत्री थी
रोबर्ट्स बढेरा हों या चटवाल सभी हैं मालामाल पर देश हो गया है कंगाल
उस पर अच्छा नहीं लिखा जा सकता
कोंग्रेस /भाजपा /माकपा/आप पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
कोंग्रेस के लिए भ्रष्टाचार अन्तरंग है और भाजपा के लिए जल तरंग
दिल्ली में कुछ मोमबत्ती मार्का क्रांतिकारी आम आदमी थे
क्योंकि वह वुडलैंड के जूते बिना मोज़े के पहनते थे और वोदका पी कर बुर्जुआ के प्रति बेचैन थे
फोर्ड फाउंडेशन से फण्ड खाने वाले चंदाखोर आप नेताओं को अम्बानी /टाटा से बड़ा परहेज था
हालांकि केजरीवाल टाटा के नौकर थे
लोकतंत्र की अभूतपूर्व लड़ाई भूतपूर्व नौकर -चाकरों में सिमटी है
टाटा का भूतपूर्व नौकर , वर्ल्ड बैंक का भूतपूर्व नौकर और रिलाइंस का चाकर
सेक्यूलर कुछ -कुछ सूअर का हमशक्ल शब्द है यह सर्व भोजन समभाव लेते हैं
अपने और पराये काले धन का अनुलोम विलोम करते
स्वामी रामदेव पर भी अब अच्छा लिखने का मन नहीं करता
अपने गुरु की रहस्यमय ह्त्या का राज्याभिषेक रामदेवनुमा राजनीति को रोमांचित करता है
जनता यानी कि हमारे आपके चितकबरे चरित्र पर भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
NGO के टेस्ट ट्यूब बेबी अग्निवेश,संदीप पाण्डेय,तीस्ता सीतलवाद,किरण बेदी,
केजरीवाल, शबाना आजमी , महेश भट्ट
अनुदानों के कीचड़ में किलोलें कर रहे हैं, इन पर भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
अन्ना का पन्ना अभी लिखा जाना शेष है
अन्ना गांधी बनने चले थे
पर गांधी तो चालीस साल तक एक आन्दोलन को अंजाम तक पहुंचाता है
यह तो एक साल में हांफने लगे 
आतंकवाद में शामिल मौलवियों के बारे में भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
और यौनशोषण के आरोपों में लिप्त महंतों और पादरियों के बारे में भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
क्रिकेट पर दाउद की दया है, उसका हर मैच फिक्स है
बाकी खेल दयनीय से हैं उनकी दशा पर अच्छा नहीं लिखा जा सकता
इसीलिए आज छुट्टी
आज कुछ नहीं लिखूंगा. " -- राजीव चतुर्वेदी



"गिरे हुए लोग उठते हैं बड़ी खूबी से ,
और हम भी हैं कि चुनते हैं उन्हें बेवकूफी से."

---राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

bhagat said...

वाह! उस्ताद वाह!