Monday, June 25, 2012

यह कौन सी अर्थ व्यवस्था है कि देश की आर्थिक अर्थी ही निकल गयी ?



"अमेरिका ने भारत को अपना गुलाम (उपनिवेश ) बनाने के लिए मनमोहन सिंह को भारत का प्रधान मंत्री बना दिया, मोंटेक सिंह अहलूवालिया के सुपुर्द योजना आयोग कर दिया और प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री बनवा दिया. यह सभी जानते हैं कि इसके पहले मनमोहन सिंह अमेरिका के वेतनभोगी कर्मचारी थे और प्रणव मुखर्जी अम्बानी घराने के पालतू प्राणी थे. मनमोहन सिंह आज तक कोई लोक सभा का चुनाव नहीं  लड़े फिर भी वह गुजरे आठ साल से प्रधान मंत्री हैं और प्रणव मुखर्जी अपने पूरे राजनीतिक जीवन में मात्र एक बार लोक सभा के लिए चुने गए वह भी इस बार ममता बनर्जी की राजनीतिक ममता की कृपा से.यह कैसा लोकतंत्र है ?...यह कौन सा किसका जनादेश है कि जिसे हमने कभी नहीं चुना वह आठ साल से प्रधान मंत्री बना बैठा है और जिसे देश की जनता चाहती ही नहीं वह अम्बानी खानदान का पानदान राष्ट्रपति बन गया  है ?--- यह किस बात का पुरुष्कार है ? यह अमेरिका के गुर्गे हैं जो भारत की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त कर भारत को अमेरिका का गुलाम बनाने की भूमिका निभा रहे हैं. तभी तो देखिये भारत की कृषि और ऋषि परम्परा सुनियोजित तरीके से नष्ट की जा रही है. देश की अर्थ व्यवस्था में कृषि की भागीदारी में चिंताजनक कमी आई है. औद्योगिक विकाश दर अब ऋणात्मक हो कर विनाश दर हो चुकी है जो -3.5 % है. देश की मुद्रा डॉलर के आगे उसी मुद्रा में है जैसे मनमोहन / मोंटेक /प्रणव अमेरिकी ओबामा के आगे नतमस्तक. भारत के आर्थिक परिदृश्य पर गौर करें,--- --हर घंटे किसान आत्म ह्त्या कर रहे हैं. खेती अलाभकारी व्यवसाय हो चुका है. उद्योग की विकास दर 8%  से घट कर 0% हुयी और अब  -3.5% हो चुकी है. उत्पादक ही नहीं शेयर बाज़ार के दलाल तक हलकान हैं. यह कौन सी अर्थ व्यवस्था है कि देश की आर्थिक अर्थी ही निकल गयी ?" -----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

कांधों पर अपने हम सबका बोझ उठाये फिरते हैं।