Sunday, September 23, 2012

तेरे अन्दर -मेरे अन्दर, एक समंदर



"तेरे अन्दर -मेरे अन्दर, एक समंदर
उस समन्दर के अंदर
सिद्धांत के कुछ बुलबुले
सवाल कुछ चुलबुले
नाराज सी नैतिकता
निरीह नीति
समय के सामने कुछ संकेत सीमित से
समन्दर के अन्दर झिलमिलाती तारों की परछाईं के प्रश्न
शेष सी यादें कई
इतिहास के उपहास की कुछ तल्खीयां
झिलमिलाती आँख में आंसू से रंगी तश्वीर कुछ
और कुछ रिश्ते समय के सेतु पर विश्राम करते से
और इस कोलाहल में बैठी याद तेरी देखता हूँ जब कभी
तैरती है याद तेरी बादलों में बिजलियों सी कौंध जाती है
और मेरी याद की पदचाप तेरे द्वार पर जा-जा कर ठहरती है
जिस पर गुजरता हूँ मैं वह रास्ता नहीं रिश्ता ही है
कुछ के लिए गुमनाम सा ...कुछ के लिए बदनाम सा ...मेरे लिए अभिमान सा."
----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सागर - लहरों का कोलाहल या समतल के विस्तृत पटल।