Sunday, December 30, 2012

घड़ी ने बांह फैला कर वख्त की पैमाइश की


" घड़ी ने बांह फैला कर वख्त की पैमाइश की,
शाम ने संकेत से था कुछ कहा
रात चन्दा की बिंदी लगाए छत पे आयी
याद की खुशबू सुबह तक थी दालानों तक
और तुलसी के घरोंदे पर
किसी ने रख दिए थे फूल हरसिंगार के
चहकती चुलबुली सी एक चिड़िया
सुबह तक उड़ गयी थी
और धीरे से हवा मुस्कुरा रही थी ." -- राजीव चतुर्वेदी

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