"तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में
या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
वेदना मुझको नहीं
संवेदना तुमको नहीं
फिर शोर कैसा है ?
शायद हमारे बीच जो बहती नदी थी
बाढ़ आयी है उसी में
और दूरी बढ़ गयी है बाढ़ में हमारे किनारों की
हमारी खामोशियों के बीच बहती हवाओं में
कुछ पत्ते खड़खडाते हैं
वह अपनी वेदना कहते हैं
हमारी बात जैसी है
गुजर गए दिन की जैसी है
गुजरती रात जैसी है
तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में
या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
क्या कहूँ ?
तेरी खामोशी भी मुझको खूबसूरत सी लगती है ." ---- राजीव चतुर्वेदी
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में
या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
वेदना मुझको नहीं
संवेदना तुमको नहीं
फिर शोर कैसा है ?
शायद हमारे बीच जो बहती नदी थी
बाढ़ आयी है उसी में
और दूरी बढ़ गयी है बाढ़ में हमारे किनारों की
हमारी खामोशियों के बीच बहती हवाओं में
कुछ पत्ते खड़खडाते हैं
वह अपनी वेदना कहते हैं
हमारी बात जैसी है
गुजर गए दिन की जैसी है
गुजरती रात जैसी है
तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में
या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
क्या कहूँ ?
तेरी खामोशी भी मुझको खूबसूरत सी लगती है ." ---- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
खामोशी शायद हर समस्या का अंतिम समाधान है
latest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
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