Thursday, December 26, 2013

ज़िंदा कातिल पर भारी पड़ता है एक मुर्दा सन्नाटा


"ज़िंदा कातिल पर भारी पड़ता है एक मुर्दा सन्नाटा
काँप जाता है ज़िंदा आदमी
तुम अहिंसक गांधी को पराक्रम से नहीं, पैर छू कर गोली से मार सकते हो
तुम ईसा को सूली पर चढ़ा सकते हो ...तो चढ़ा दो उसे
ठोक दो कीलें उसके दिल दिमाग हाथ और पैरों पर
क़त्ल कर दो उसे सरेआम
उसकी मौत तुम पर भारी पड़ेगी एक दिन
वातावरण में व्याप्त हो जाएगा कातिलों को कफ़न उढाता उसका नाम
मंडेला से मिश्र तक क्यूबा से कुवैत तक हर क्रान्ति पर दर्ज होगा उसका नाम
राजनीतिक भूगोल में क़त्ल कर दिए गए लोग कातिल से अधिक कामयाब हैं
तुमने गांधी को मारा था
और चुनाव लड़ते में तुम्हारी जुबान पर गांधी का दिया ही नारा था
स्वदेशी हो रामराज्य या स्वराज्य गांधी का दिया नारा था
जो आज भी तुम्हारा सहारा था
गांधी की ह्त्या करनेके के बाद तुम एक नारा भी नहीं गढ़ सके ?
जब कातिलों ने सूली पर टांगा था ईसा को तो उन्हें नहीं पता था
खंडित हो जाएगा काल
और फिर वह "काल-खंड" कहलाएगा
टांगा था ईसा को तो देखलो यह सच लटकता हुआ ...खंडित काल खंड
युग बाँट गया "ईसा पूर्व" और "ईसा बाद" में .
पर याद रखो
ईसा मसीह के अनुयायी
साल दर साल सलीब सजाते हैं
लाखों नयी सलीब बनाते हैं
और उसपर ईसा को टांग कर जश्न मनाते हैं
सलीबें तोड़ते नहीं देखे
याद रहे
ईसा के अनुयाईयों ने ही टांगा था गैलीलियो को मौत के सलीब पर
गैलीलियो सच था और फिर ब्रम्हांड बाँट गया
सलीब पर टंगे लोगों की आह से
दुनिया बाँट गयी पहली दूसरी और तीसरी दुनिया में
सलीब पर टंगा असहाय दिखता सच
काल खंड को बाँट देता है
क्योंकि सच के लिए मर चुका आदमी दोबारा मर नहीं सकता
इसलिए निर्भीक होता है ...पूरी तरह एक मुर्दा मृतुन्जय
सच के लिए सचमुच मर चुके लोगो
अब तुम्हारे ज़िंदा होने का समय आ गया है
पहले से भी ज्यादा ज़िंदा और धड़कते हुए
ईसा पूर्व ...ईसा बाद, ...शताब्दी, ...साल महीने ..सप्ताह ..दिल में धड़कते हुए
बता दो उन्हें क़ि तुम जिन्हें वक्त की सूली पर टंगा मरा हुआ सा असहाय समझते थे
वह सभी सत्य ज़िंदा होगये हैं
तारीख बदलेगी तो तवारीख भी बदलेगी ...तश्दीक कर लेना
जब जब दमन होगा तुमको गांधी याद आयेंगे गौडसे नहीं
बदल दो नए साल का केलेंडर
कितना बदलोगे कितनी बार बदलोगे
विश्व के क्रान्ति पटल पर गांधी ज़िंदा है
विज्ञान में गैलीलियो और अभिमान में सूली पर टंगा ईसा ज़िंदा है
मुर्दा कातिलों को कफ़न उढाओ,
यह सभ्यता इनकी करतूत से शर्मिंदा है .
" ----राजीव चतुर्वेदी





No comments: