Thursday, July 31, 2014

फिर परिभाषा ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो

"अक्षर वह हैं , शब्द वही हैं , भाषा वह है
फिर परिभाषा ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो
रिश्ते वह हैं , देह वही है बस उम्र बही है चट्टानों से दरिया सी
फिर मिलने की चाहत ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो
मैं भी वह हूँ , तुम भी वह हो अक्स वही है दर्पण में

फिर मिलने की अभिलाषा ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो
जनता वह है , देश वही है , मुद्दे वह हैं
फिर नेताओं की भाषा ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो
कातिल वह है, लाश वही है , खंजर वह है , मंजर वह है
फिर मुलजिम के नामों की सूची ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो
अक्षर वह हैं , शब्द वही हैं , भाषा वह है
फिर परिभाषा ही क्यों बदली है ? --- बोलो तो .
"
----- राजीव चतुर्वेदी

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