Saturday, March 21, 2015

आँसुओ मजहब बताओ

"आँसुओ मजहब बताओ
कुछ केशरिया से आँसू हैं
तो कुछ आँसू हरे हरे से हैं
कुछ वामपंथ के आँसू सुर्ख लहू जैसे
कुछ पूंजीवादी आँसू हैं, कुछ अवसरवादी आँसू है
यहाँ हर हड़ताली की आँखों में घड़ियाली से आंसू हैं
कुछ सरकारी आँसू हैं
विछोहों की विवशता से बिलखती आँख के आँसू
बहू की मौत पर पाखण्ड करती सास के आँसू
वास्तविक आँसू आँख में अक्सर चुपचाप रहते हैं
मौत विश्वास की हो , विवशता की या कि रिश्ते की
छलक जाते हैं कुछ आँसू भावना के भंगुर भूगोल को ले कर
खून का ग्रुप तो पता चल जाएगा
पर ख्वाब का ...ख्वाहिश का ग्रुप भी खोज लो
आँसुओं का ग्रुप पता हो जाएगा
ताप में ...संताप में जब भावना भाप सी उड़ने लगे
पर कहीं ठण्डक सी पा कर बूँद सी गिरने लगे
आँख की बस उस नमीं में आंसुओं का अक्स है

आँसुओ मजहब बताओ
कुछ केशरिया से आँसू हैं
तो कुछ आँसू हरे भी हैं
यहाँ हर हड़ताली की आँखों में घड़ियाली से आंसू हैं
कुछ सरकारी आँसू हैं
विछोहों की विवशता से बिलखती आँख के आँसू
बहू की मौत पर पाखण्ड करती सास के आँसू.
"

------ राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

Bharti Das said...

बहुत ही सुन्दर रचना

dr.mahendrag said...

सुन्दर अभिव्यक्ति ,कहना चाहूँगा -
आंसू का कोई रंग नहीं होता आंसू पर कोई गम लिखा नहीं होता ,
आंसू तो बेजुबानी है ,हर आंसू की बस यही तो कहानी है